भोपाल और दिल्ली …. बोले तो, प्रदेश और राष्ट्रीय स्तर के नेताओं से डायरेक्ट टच में रहने वालो से लदी, सजी और भरी पड़ी, इन्दौर कांग्रेस में, डिक्लेयर- होल्ड - डिक्लेयर के बाद शहर कांग्रेस अध्यक्ष पद पर प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ के ग्रीन सिग्नल से सुरजीत सिंह चड्ढा का मनोनयन हुआ, इस मनोनयन के साथ ही दो जुमले तुरन्त सुर्खियों में आ गए थे, एक तो इन्दौर शहर कांग्रेस में जोशी युग की वापसी और दूसरा ब्लैक फार्च्यूनर।…. दूसरे की चर्चा अभी नहीं फिर कभी, हां पहले की हकीकत सुरजीत सिंह के शहर कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में एक्शन मोड में आते ही दिखाई दी, जब उन्होंने स्व. महेश जोशी युग के एक कद्दावर आदरणीय नेता की शहर कांग्रेस की मुख्य धारा में वापसी करवाई वहीं उस दौर के बुजुर्ग नेताओं को भी ज्ञापन प्रदर्शन में अपने साथ शामिल करने लगे।…. लेकिन आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर बीजेपी को शहर में चुनौती देने की जो एकजुटता शहर कांग्रेस में आनी चाहिए थी…. वह कहीं भी नहीं दिखाई दी और अब तक भी नहीं दिखाई दे रही है।
कांग्रेस नेताओं की गुट बाजी में आकंठ डूबे इन्दौर में, विनय बाकलीवाल के बाद घोषित कांग्रेस अध्यक्ष अरविंद बागडी को लम्बे अरसे तक होल्ड करने के बाद फिर उनकी जगह सुरजीत को…. प्रदेश कांग्रेस कमेटी ने… शहर कांग्रेस अध्यक्ष मनोनीत किया, लेकिन वे इन्दौर के वर्तमान सक्रिय शहर कांग्रेसियों की देश प्रदेश के वरिष्ठ नेताओं से ….कनेक्टिविटी का आंकलन करना भूले या शायद नहीं ही कर पाएं ….. जिसका नतीजा यह कि आज तकरीबन दो माह होने के बाद भी शहर कांग्रेस कमेटी को वो तवज्जो नहीं मिल रही जिसकी वो हकदार हैं …. और आगामी विधानसभा चुनावों को देखते हुए जिसकी इन्दौर शहर कांग्रेस को बहुत ही शक्त जरूरत भी है।
सुरजीत सिंह के शहर अध्यक्ष बनने के बाद भी इन्दौर कांग्रेस में आशातीत एकजुटता नजर नहीं आ रही है, कारण इन्दौर के सक्रिय नेताओं की अपनी डफ़ली अपना राग अलापने की पुरातन पृवत्ति, अधिकांश इन्दौरी कांग्रेसी प्रदेश या राष्ट्रीय स्तर के नेताओं से सीधे जुड़े हुए हैं … जिसे खालिस इन्दौरियों की बोल चाल स्टाइल में ….उनका पठ्ठा कहा जाता है…. उनको उनके गुट का माना जाता है…..और जो निर्गुट है, (वैसे तो इन्दौर कांग्रेस में कोई निर्गुट है ही नहीं, फिर भी मान ले कि जो निर्गुट है) वे सीनियरिटी के कारण सुरजीत सिंह को अध्यक्ष पदासीनता के बावजूद उतना रिस्पांस नहीं देते, उनकी नजरों में वे जूनियर ही है, कारण सुरजीत सिंह के स्व. पिता भी इन्दौर शहर कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके थे और अधिकांशतः कांग्रेसी उनके समकक्ष ही है।
सत्यनारायण पटेल डाइरेक्ट प्रियंका गांधी के टच में तो जीतू पटवारी राहुल गांधी के, वहीं सज्जन वर्मा कमलनाथ के खास, अरविंद बागड़ी को शोभा ओझा समर्थक माना जाता है, आज प्रदेश कांग्रेस में शोभा ओझा की स्थिति से सभी कांग्रेसी वाकिफ हैं, तो अश्विनी जोशी दिग्विजय सिंह के, वैसे सुरजीत सिंह भी दिग्विजय गुट से ही है और इसी तरह एक एक कर शहर के अन्य सभी चर्चित कांग्रेसियों की बहुत सुदृढ़ स्थिति है।
इन्दौर में कांग्रेस नेताओं की सक्रियता का आलम यह भी है कि सभी अपने अपने शीर्ष नेताओं के डायरेक्ट टच में रहते अपनी गतिविधियों को जारी रखे हुए हैं, उनके राजनितिक कार्यक्रमों में शहर अध्यक्ष के रूप में सुरजीत सिंह की ….. न तो आवक होती है ना शहर कांग्रेस के आयोजनों में उनकी जावक….. संभवतः यह भी होता हो कि या तो शहर अध्यक्ष सुरजीत सिंह को अपने कार्यक्रमों में वे आमतौर पर आमंत्रित ही नहीं करते….. या आमंत्रित करते भी हैं तो सुरजीत सिंह वहां नहीं जाते हों।
हालांकि हो सकता है कि पूर्व अध्यक्ष और पूर्व घोषित अध्यक्ष विनय बाकलीवाल तथा अरविंद बागडी को प्रदेश कमेटी में संगठन ने इसी मंशा के साथ शामिल किया होगा कि शहर कमेटी में भी उनका सहयोग मिलेगा और एकजुटता बनाए रखी जा सकेगी, लेकिन ऐसा हो नहीं रहा। उधर विधानसभा चुनाव में टिकट दावेदारी करने वालों के साथ साथ ही, अपना टिकट कन्फर्म मानने वाले नेताओं जिनमें मुख्य रूप से सत्यनारायण पटेल, संजय शुक्ला, जीतू पटवारी, सज्जन सिंह वर्मा विशाल पटेल, चिंटू चौकसे, अश्विनी जोशी, पिंटू जोशी, प्रेमचंद गुड्डू एंड सन्स जैसे अनेकानेक अन्य सक्रिय नेताओं की शहर कांग्रेस की गतिविधियों में कोई रूचि नहीं है …..वे अपनी जमीन जमावट में ही मगन हैं, वे इस मुगालते में है कि शहर कांग्रेस की मजबूती या कमजोरी का उनकी उम्मीदवारी या उनके चुनाव क्षेत्र में …. कोई इफेक्ट नहीं होगा।
मध्यप्रदेश की राजनीति में इन्दौर का महत्व सिर्फ इस एक बात से लगाया जा सकता है कि मध्यप्रदेश में दिग्विजय सिंह की सरकार पलटते… बीजेपी को बहुमत में ला…. उमाभारती की मुख्यमंत्री के रूप में ताजपोशी वाले चुनाव में….. इन्दौर के नेताओं ने अहम भूमिका निभाई थी। उमाभारती मंत्रिमंडल में इन्दौर के तीन नेता महत्वपूर्ण विभागों में मंत्री सहित, अन्य कई निगम मंडल में शामिल थे।….. यही नहीं वर्तमान में इन्दौर बीजेपी के एक नेता की लोकप्रियता ….. प्रदेश में प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से भी कहीं अधिक हैं ….. और इसके पीछे भी परोक्ष रूप से उनका इन्दौर का सगंठन भी है। हालांकि इन्दौर कांग्रेस में शायद अभी उस स्तर का कोई नेता नहीं माना जा सकता परन्तु संगठन की मजबूती तो जरूरी है।
ज्ञात हो कि कांग्रेस में भी एक दौर था …. जब इन्दौर शहर कांग्रेस और इन्दौर के कांग्रेस नेताओं का जलवा देश प्रदेश में सर चढ़कर बोलता था, ज्यादा पहले की नहीं यही दिग्विजय सिंह कार्यकाल की ही बात करें,… तो उनके मुख्यमंत्रित्व काल में इन्दौर के कांग्रेसी नेता को शैडो मुख्यमंत्री का दर्जा दिया गया था, ….. वहीं दिग्विजय सिंह अपने कार्यकाल में जितने दिन शायद भोपाल में न रहे हों …..उससे ज्यादा इन्दौर उनका आवागमन रहा, यही हाल उनके मंत्रिमंडल के कई सदस्यों के भी थे, कारण कुछ और भी हो सकता जिसपर अलग से चर्चा भी की जा सकती हैं,… परन्तु हाल फिलहाल यहां शहर कांग्रेस की मजबूती और एकजुटता की बात की जा रही है आगामी विधानसभा चुनाव के संदर्भ में।
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ और प्रदेश कांग्रेस संगठन को, इन्दौर शहर कांग्रेस की इस हालत पर जिससे प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ भी अच्छी तरहां वाकिफ होंगे या नहीं भी हो सकते हैं,….. विचार करना जरूरी है, क्योंकि मध्यप्रदेश के सबसे बड़े और कमर्शियल राजधानी माने जाने वाले शहर में कांग्रेस की इस हालत से सिर्फ मालवा निमाड़ ही नहीं सम्पूर्ण प्रदेश कांग्रेस प्रभावित होगी। …. यदि इन्दौर हाथ से जाता है, तो मालवा निमाड़ ही नहीं बल्कि ….. मध्यप्रदेश भी हाथ से जा सकता है।
लेखक- आनंद पुरोहित
