भगवान जगन्नाथ रथयात्रा भगवान विष्णु के अवतार की भक्ति का प्रतीक है

विचार

हर साल आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को भगवान जगन्नाथ की भव्य रथ यात्रा निकाली जाती है। इस यात्रा को रथ महोत्सव और गुंडिचा यात्रा के नाम से जाना जाता है। इस बार जगन्नाथ रथ यात्रा की शुरुआत 07 जुलाई से हो रही है। पद्म पुराण की मानें तो एक बार भगवान जगन्नाथ की बहन सुभद्रा ने नगर देखने की इच्छा जाहिर की। इसके लिए भगवान जगन्नाथ ने सुभद्रा को रथ पर बैठाकर नगर दिखाया। इस दौरान वह अपनी मौसी के घर भी गए। जहां वह सात दिन तक रुके। मान्यता है कि तभी से हर साल भगवान जगन्नाथ निकालने की परंपरा जारी है।ज्येष्ठ मास में गर्मी का आरम्भ होता है, अतः पुरी में श्रीजगन्नाथ जी के चतुर्धा विग्रह को स्नान कराया जाता है। १०८ घड़ों से स्नान के बाद उनको ज्वर हो जाता है, तथा १५ दिन बीमार रहने पर उनकी चिकित्सा होती है। उसके बाद आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को वे घूमने निकलते हैं। ३ रथों में जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा गुण्डिचा मन्दिर तक जाते हैं तथा ९ दिन बाद दशमी को लौटते हैं जिसे बाहुड़ा कहते हैं। लौटने को बहोर कहते हैं-गयी बहोर गरीब नेवाजू सरल सबल साहिब रघुराजू। (रामचरितमानस, बाल काण्ड, १२/४)। चान्द्र मास में भी जब अमावास्या के बाद चन्द्र सूर्य से दूर जाता है तब शुक्ल पक्ष की शुद्ध तिथि होती है। जब सूर्य के निकट लौटता है तब बहुल तिथि होती है।परब्रह्म के अव्यय पुरुष रूप को जगन्नाथ कहा गया है। इसे गीता (१५/१) में विपरीत वृक्ष कहा गया है। भगवान बलभद्र को बलराम, दाऊ और बलदाऊ के नाम से भी जाना जाता है। बागियों में श्रेष्ठ होने के कारण इन्हें बलभद्र भी कहा जाता है। बलभद्र को शेषनाग के नाम से जाना जाता है और भगवान जग अर्थात श्री कृष्ण को भगवान कृष्ण का अवतार माना जाता है।. कहा जाता है कि जब कंस ने देवकी-वसुदेव के छह पुत्रों को मार डाला था, तब देवकी के गर्भ से शेषावतार और भगवान बलराम का जन्म हुआ था। योगी आदित्यनाथ ने उन्हें आकर्षित कर नंद बाबा के यहां रह रही श्री रोहिणी जी के गर्भ में निषेचित करवा दिया था। इसलिए उनका नाम संकर्षण पड़ा। श्री कृष्ण और बलराम की माताएं अलग-अलग हैं, लेकिन वे एक ही हैं। ध्यान से देखा जाए तो वे पहले देवकी के गर्भ में थे। बलराम सत्ययुग के राजा कुकुदनी की पुत्री रेवती के वंशज थे। रेवती बलराम से काफी लंबी थी, इसलिए बलराम ने उसे अपने हल से पराजित कर दिया था। संसार की रथयात्रा में बलभद्र का भी रथ है। वे गदा धारण करते हैं। बलराम ने अपनी गदा से योगेन्द्र और भीम दोनों को मार डाला था। कौरव और पांडव दोनों ही उनके बराबर थे, इसलिए उन्होंने युद्ध में भाग नहीं लिया। मौसूलम युद्ध में यवंश के विनाश के बाद बलराम ने समुद्र तट पर बैठकर अपने प्राण त्याग दिए।सुभद्रा श्री कृष्ण की बहन भी थीं। बलराम चाहते थे कि सुभद्रा का विवाह कौरव कुल में हो। बलराम के हठ के कारण कृष्ण ने सुभद्रा का अर्जुन से हरण करवा दिया। बाद में अर्जुन का विवाह सुभद्रा से राका में हुआ।. विवाह के बाद वे एक वर्ष तक राका में रहे और शेष समय पुकुर में बिताया। 12 वर्ष पूरे होने पर वे सुभद्रा के साथ इंद्रप्रस्थ लौट आए।. सुभद्रा का पुत्र अमौध था, जिसे युद्ध में फंसने के कारण धन, कर्ण समेत कुल के आठ लोगों ने मार डाला था। अमौध की पत्नी उर थी, जिसके गर्भ से पार्वती का जन्म हुआ और पार्वती के पुत्र जनमेजय थे कहा जाता है कि नरकासुर का वध करने के बाद भगवान कृष्ण अपनी बहन सुभद्रा के घर उसके भाई को लेने गए थे। सुभद्रा ने उनका स्वागत किया और अपने हाथों से उन्हें भोजन कराया और उनके गले में एक ताला डाल दिया। पुरी में जगत की यात्रा में भगवान कृष्ण के साथ बलराम और सुभद्रा दोनों की मूर्तियां रखी जाती हैं। सुभद्रा वसुदेव की पत्नी रोहिणी की पुत्री थीं, जबकि श्रीकृष्ण वसुदेव की पत्नी देवकी के पुत्र थे। इस तरह श्रीकृष्ण और सुभद्रा के पिता एक ही थे लेकिन माताएं अलग-अलग थीं। फिर भगवान जगत को बड़े भाई बलराम जी और बहन सुभद्रा के साथ राणा हाउस से नीचे उतारकर मंदिर के पास बने नान मंडप में ले जाया जाता है। उन्हें 108 कलशों से स्नान कराया जाता है। मान्यता है कि इस स्नान से भगवान बीमार हो जाते हैं और वे पुनः स्वस्थ हो जाते हैं। फिर 15 मिनट के लिए भगवान जगत को शेष कलश में रखा जाता है। इसे शेष घर कहते हैं। 15 मिनट की इस अवधि में मंदिर के मुख्य सेवक और वैभव के अलावा महाप्रभु के दर्शन कोई नहीं कर सकता। इस अवधि में मंदिर में महाप्रभु की प्रभात की पूजा की जाती है और उनकी पूजा की जाती है। 15 मिनट के बाद भगवान स्नान कर कलश से बाहर आते हैं और भक्तों को दर्शन देते हैं। इसे नव युवा नैत्र उत्सव भी कहते हैं। इसके बाद भगवान कृष्ण और बड़े भाई श्रीकृष्ण भाई बलभद्र और सुभद्रा के साथ पुरी आते हैं और रथ पर बैठने की बजाय नगर भ्रमण पर निकलते हैं।वेद में इनको ५ प्रकार से दारु ब्रह्म कहा गया है-जगत् का आधार, निरपेक्ष द्रष्टा, निर्माण सामग्री, निर्माण की शाखायें या विविधता, चेतन तत्त्व या संकल्प-कर्म-वासना का चक्र। परमात्मा तथा उसके व्यक्ति रूप आत्मा का सम्बन्ध देखने पर, आत्मा का कर्म रूप जीव (बाइबिल का आदम-ईव) पत्नी है, जगन्नाथ पति हैं, उन दोनों के बीच सुभद्रा रूपी माया का आवरण ननद है। ननद का अर्थ है न-नन्दति, अर्थात् भाई को पत्नी से अधिक प्रेम करते देख प्रसन्न नहीं होती। इस भाव में विद्यापति, कबीर, महेन्द्र मिश्र आदि के कई निर्गुण गीत हैं। तुलसीदास जी ने इनका वर्णन किया है-आगे राम लखन बने पाछे। तापस वेश विराजत काछे॥उभय बीच सिय सोहति कैसी। ब्रह्म जीव बिच माया जैसी॥ (रामचरितमानस, २/१२२/१) आगे श्री रामजी हैं, पीछे लक्ष्मणजी सुशोभित हैं। तपस्वियों के वेष बनाए दोनों बड़ी ही शोभा पा रहे हैं। दोनों के बीच में सीताजी कैसी सुशोभित हो रही हैं, जैसे ब्रह्म और जीव के बीच में माया!जगन्नाथ के कई देव रूप हैं-विश्व का वास या आधार-वासुदेवजगत् का क्रिया रूप = जगन्नाथचेतन तत्त्व = पुरुषमूल स्रोत से पूर्ववत् सृष्टि = वृषा-कपि (हनुमान)=जल जैसे स्रोत का पान कर ब्रह्माण्ड, तारा, ग्रह आदि विन्दुओं की सृष्टि।तत्र गत्वा जगन्नाथं वासुदेवं वृषाकपिम्। पुरुषं पुरुषसूक्तेन उपतस्थे समाहितः॥ (श्रीमद् भागवत पुराण, १०/१/२०)एक ही परम तत्त्व के चतुर्धा विग्रह है-जगन्नाथ = चेतन तत्त्वबलभद्र = विश्व के निर्मित रूपसुभद्रा = माया का आवरणसुदर्शन = आकाश। सौर मण्डल में क्रान्ति वृत्त (पृथ्वी कक्षा) ही सुदर्शन चक्र है जो चन्द्र के २ पात (राहु-केतु) को काटता है, या राहु का सिर काटता है।अन्य रूप में ४ व्यूह कहे गये हैं-वासुदेव – आकाश संकर्षण = परस्पर आकर्षण से ब्रह्माण्ड, तारा, ग्रह क्रम से सृष्टि।प्रद्युम्न = तारा से ज्योति निकलना जिससे जीवन चल रहा है।अनिरुद्ध = अनन्त प्रकार या विविध सृष्टि (चित्राणि साकं दिवि रोचनानि —, अथर्व वेद, १९/७/१)रथयात्रा सृष्टि चक्र है जिसके १० सर्ग इसके १० दिन हैं। १ अव्यक्त स्रोत, ९ व्यक्त सृष्टि।अथ यद् दशमे अहन् प्रसूतो भवति यस्माद् दशपेयो (शतपथ ब्राह्मण, ५/४/५/३)अथ यद् दशमं अहः उपयन्ति। संवत्सरं एव देवता यजन्ते। (शतपथ ब्राह्मण, १२/१/३/२०)श्रीः वै दशमं अहः (ऐतरेय ब्राह्मण, ५/२२)प्रतिष्ठा दशमं अहः (कौषीतकि ब्राह्मण, २७/२, २९/५)अन्तो वा एष यज्ञस्य यद् दशमं अहः (तैत्तिरीय ब्राह्मण, २/२/६/१)प्रजापतिः वै दश होता (तैत्तिरीय ब्राह्मण, २/२/१/१ आदि)संवत्सर चक्र रूप में जगन्नाथ के रथ का चक्र जगन्नाथ मन्दिर से गुण्डिचा मन्दिर तक जाने में ३६५ बार घूमता है।मनुष्य का गर्भ में जन्म चन्द्र की १० परिक्रमा (२७३ दिन) में होता है। प्रेत शरीर चान्द्र कक्षा की वस्तु है, उसका निर्माण पृथ्वी के १० अक्ष भ्रमण या १० दिन में होता है।जगन्नाथ का स्नान, ज्वर आदि मनुष्य रूप की क्रियायें है। उनका स्नान केवल दिखाने के लिए है, जिसे गज स्नान कहते हैं। हाथी स्नान करने केबाद अपने शरीर पर धूल फेंकता है। अतः स्नान पूर्णिमा के दिन जगन्नाथ भी गणपति वेष धारण करते हैं।१९७७ की स्नान पूर्णिमा दिन वर्षा हुयी थी। बाणासुर ने युद्ध में माहेश्वर ज्वर =वुहान् का कोरोना वायरस का प्रयोग किया था जिसके बलराम जी बीमार हो गये थे। तब भगवान् कृष्ण ने वैष्णव ज्वर या योग बल से उसे शान्त किया था। योग द्वारा ही वायरस से सुरक्षा हो सकती है-भागवत पुराण, १०/६३/२२२४, हरिवंश पुराण, विष्णु पर्व, १२२/७१-८१) स्नाने प्रभोरवसिते बलभद्र भद्रा, युक्तस्य युक्तमिह मत्तगजोपमस्य।राजाप्यसौ गजपतिर्धृतमार्जनीकः, यत्स्नानवेदिमिह मार्ष्टि यथा रथं ते॥१३॥पुरी के राजा को गजपति कहते हैं। वे भगवान् के सेवक रूप में उनकी यत्रा के पहले रास्ते को झाड़ू से साफ करते है। इसी प्रकार मेवाड़ के महाराणा भी एकलिंग के दीवान रूप सेवक हैं श्री जगन्नाथ देवस्य स्नान पञ्चदशिस्तवः।क्लृप्तस्सुन्दरराजेन कल्पतां विदुषां मुदे॥१७॥पहले कृष्णावतार में गोवर्धन धारण कर इन्द्र कि वर्षा को रोक दिया था, बदला लेने के लिए उनकी स्नान यात्रा के समय अब इन्द्र वर्षा कर रहे हैं। भगवान जगन्नाथ के रथ में 16 पहिये होते हैं। रथ को शंखचूड़ रस्सी से खींचा जाता है। रथ को बनाने के लिए नीम की लकड़ी का प्रयोग किया जाता है।इस दिन तीन विशालकाय और भव्य रथों पर भगवान जगन्नाथ, बलभद्र जी और देवी सुभद्रा विराजमान होते हैं। सबसे आगे बलराम जी का रथ चलता है, बीच में बहन सुभद्रा जी होती हैं और सबसे पीछे भगवान जगन्नाथ जी का रथ चलता है।जगन्नाथ भगवान विष्णु के एक अन्य अवतार राम के रूप में तुलसीदास के सामने प्रकट हुए, जिन्होंने उन्हें राम के रूप में पूजा और 16वीं शताब्दी में पुरी की अपनी यात्रा के दौरान उन्हें रघुनाथ कहा। कभी-कभी उन्हें कृष्ण (यानी, बुद्ध-जगन्नाथ) या विष्णु (यानी, वामन) के अवतारों में से एक माना जाता है। भगवान जगन्नाथ का रथयात्रा भगवान विष्णु के अवतार भगवान जगन्नाथ की भक्ति का प्रतीक है। यह त्योहार समानता और भाईचारे का संदेश देता है। रथ यात्रा पुरी शहर और ओडिशा राज्य के लिए एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक और धार्मिक उत्सव है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *