सनातन धर्म और हिंदुत्व पर भाजपा ने अपना कॉपीराइट बना लिया है। मतदाताओं के बीच में भाजपा की पहचान सनातनी और हिंदुत्व राजनीतिक दल के रूप में बन चुकी है। यह खेल 1989 में कमंडल और मंडल के रूप में पहले भी खेला जा चुका है। 25 वर्ष बाद पुनः राजनीति, देश में शुरू हो गई है। पिछले 25 वर्षों में भारत की राजनीति में बड़ा बदलाव आया है। उत्तर भारत के राज्यों में हिंदुओं की बहुसंख्यक आबादी है। धार्मिक आधार पर जो राजनीति शुरू की गई थी। भाजपा ने केंद्र बिंदु, धार्मिक आधार पर हिंदू और मुस्लिम को बनाया था। धार्मिक ध्रुवीकरण को लेकर मंडल कमीशन के माध्यम से जो राजनीति पिछड़ा वर्ग और दलित नेताओं ने करने की कोशिश की थी। उसे हिंदुत्व की राजनीति और मुस्लिम विरोध ने हिंदु समुदाय को भाजपा के पक्ष में एकजुट किया था, जिसके परिणाम स्वरुप कई राज्यों में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी। 2014 में केंद्र में भारतीय जनता पार्टी की, स्पष्ट बहुमत की सरकार बनी। पिछले 25 साल का धार्मिक ध्रुवीकरण के आधार पर सत्ता का बदलाव था। तमिलनाडु के खेल मंत्री उदयनिधि स्टालिन, जो मुख्यमंत्री स्टालिन के पुत्र हैं। तमिलनाडु में द्रविड़ राजनीतिक अंतरनिहित है। समाज सुधारक के रूप में रामास्वामी नायकर पेरियार का द्रविड़ संस्कृति पर प्रभाव पड़ा। वहां दलित और पिछडों के बीच में एक जन आंदोलन में सनातन धर्म के विरोध में, दलित और पिछड़े एकत्रित हुए। सनातन धर्म की कई परंपराओं का उन्होंने विरोध किया था। तर्क आधारित विचार पद्धति का समर्थन करते हुए, राजनीतिक आंदोलन का आधार बना। तमिलनाडु की राजनीति में उदयनिधि स्टालिन का सनातन धर्म का विरोध मास्टर स्ट्रोक है। जिसका फायदा डीएमके को तमिलनाडु में होना तय है। उदयनिधि के इस बयान से तमिलनाडु के अंदर कोई हंगामा देखने को नहीं मिल रहा है। भारत की राजनीति में उदयनिधि के इस बयान को लेकर एक नई सनातनी राजनीति शुरू हो गई है। भारतीय जनता पार्टी इसे सनातन धर्म का अपमान बताकर, हिंदुत्व की राजनीति को अपने पक्ष में करने की मुहिम चला रही है। भारतीय जनता पार्टी ने इसे कांग्रेस और इंडिया गठबंधन से जोड़कर, चुनाव के पहले धार्मिक आधार पर ध्रुवीकरण करने की कोशिश की जा रही है। तमिलनाडु में अन्ना डीएमके भी इसके विरोध में खड़ी नहीं हो पा रही है। भारतीय जनता पार्टी भी उदयनिधि के इस बयान का विरोध तमिलनाडु में करने की स्थिति में नहीं है। देश के अन्य हिन्दी भाषी राज्यों में स्टालिन के सनातन धर्म के विरोध को आधार बनाकर धार्मिक धुव्रीकरण कर लोकसभा चुनाव 2024 जीतने की रणनीति भारतीय जनता पार्टी बना रही है।
25 बरस के बाद एक बार फिर कमंडल और मंडल का संघर्ष जातियों के बीच में देखने को मिल रहा है। हाल ही में मणिपुर में जो हिंसक घटनाएं हुई हैं। वह ईसाई धर्म के खिलाफ थी। जिसमें सैकड़ों चर्च जला दिये गए। जिस तरह से सनातन धर्म के धर्माचार्य सनातन को हिंदुत्व से जोड़कर बयान दे रहे हैं। उससे आम जनता के बीच में जाति संघर्ष अब धार्मिक आधार पर ध्रुवीकरण को लेकर एक नई राजनीति शुरू हो गई है। सनातन का अर्थ सदा से जो धर्म अस्तित्व में है। उसे सनातन धर्म कहा जाता है। ब्रह्मा, विष्णु, महेश, जैन धर्म, बौद्ध धर्म इत्यादि अपने आप को सनातन धर्म से जोड़ते हैं। भगवान राम और कृष्णा भी इसी सनातन धर्म की श्रृंखला में आते हैं। इनका भी हजारों वर्षों का इतिहास है। सनातन धर्म में आस्था को अजर अमर माना गया है। आस्था ही धर्म को आचरण में स्थापित करने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। सनातन धर्म, पुनर्जन्म में विश्वास करता है। सनातन धर्म की विभिन्न धार्मिक शाखाएं आस्थाओं और विश्वास के रूप में हजारों लाखों वर्षों से परंपरागत रूप में पीढ़ी दर पीढ़ी संस्कार के रूप में मान्यता हैं। हाल ही में जिस तरह से रामचरितमानस का विरोध उत्तर प्रदेश में स्वामी प्रसाद मौर्य, ने ढोल-गंवार, शूद्र-पशु और नारी की चौपाई का उल्लेख करते हुए धार्मिक ध्रुवीकरण को बढ़ाने का काम किया है। हिंदुत्व ध्रुवीकरण की राजनीति में अब पिछड़े दलित और शूद्र, भाजपा के हिंदुत्व से दूरियां बनाने लगे हैं। भारतीय जनता पार्टी के हिंदुत्व के कॉपीराइट का विरोध करने के लिए सनातन धर्म का विरोध कर रहे हैं। राजनीतिक आधार पर देश अब जातियों में बंट रहा है। हिंदुओं में ब्राह्मणों की आबादी जो हिंदुत्व धर्म के शीर्ष ठेकेदार के रूप में अपने आप को हजारों-लाखों वर्षों से श्रेष्ठ मानते आए हैं। शुद्र-दलित और पिछड़ों की उपेक्षा करते आ रहे हैं। जिसके कारण भारत की बड़ी आबादी कभी सनातन धर्म से नहीं जुड़ पाई। ब्रम्हा, विष्णु और महेश के उपासको के बीच भी संघर्ष की कथाएं प्रचलित हैं। अब तो भारत में जिस तरह से धर्म के आधार पर लोगों को बांटा जा रहा है। अभी तक हिंदू और मुसलमान के बीच में धार्मिक ध्रुवीकरण हो रहा था। अब उसमें इसाई जैन और सिख को भी निशाना बनाया जा रहा है। हिंदू धर्म के ठेकेदारों के रूप में मूल रूप से ब्राह्मण समुदाय नेतृत्व करता हैं। उन्होंने इसे चरम संघर्ष पर लाकर खड़ा कर दिया है। सनातन धर्म की स्वीकारता तभी तक है, जब तक उसे लोग स्वीकार करते हैं। उनकी संख्या बहुतायत में होती हैं। धर्म आम जनता की आस्था बनता है। हिंदू समाज ने कभी भी अपने से जुड़े हुए दलितों और शूद्रों की चिंता नहीं की। उनसे हमेशा दूरियां बनाकर रखी। उनका शोषण किया। जिसके कारण समय-समय पर जन आंदोलन और विचारों को लेकर जो संघर्ष हुआ है। उसने कई धर्मों की स्थापना कर दी। इस्लाम और ईसाई धर्म भी केवल इसलिए फैला है, कि भारत में रहने वाले शुद्र और दलितों के सुख-दुख में कभी सनातनियों ने हिस्सा नहीं लिया। जिसके कारण समय-समय पर सत्ता में बड़े-बड़े बदलाव होते रहे है। राजा जिस धर्म का पालन करने वाला होता है। प्रजा भी उसी धर्म को श्रेष्ठ मानने लगती है। लेकिन जैसे ही राजा का राज्य चला जाता है। नया राजा आता है। बहुसंख्यक आबादी इस धर्म को मानने लगती है। सत्ता के लिए तिलक तराजू और तलवार, इनको मारो जूते चार का नारा एक समय बड़ा लोकप्रिय हुआ। उत्तर प्रदेश सहित हिंदी भाषी राज्यों में बसपा बहुत तेजी के साथ आगे बढ़ी। अब सत्ता के लिए यही प्रयास जातियों के आधार पर नया विघटन पैदा कर रहा है। दक्षिण भारत के राज्यों में भी समय-समय पर सनातन धर्म का विरोध हुआ है। धार्मिक एवं सामाजिक आधार पर सत्ता में परिवर्तन होते रहे है। जो अभी होता हुआ दिख रहा है। सनातन धर्म वह है जिसे मानने वाले परंपरावादी लोग बड़ी संख्या में हों। वर्तमान स्थिति में धार्मिक आधार पर यह विघटन सभी को नुकसान पहुंचाने वाला है। धर्म की जगह, अब आर्थिक आधार समाज को ज्यादा प्रभावित कर रहा है। धार्मिक आधार पर जो ध्रुवीकरण का प्रयास हो रहा है। उसका वह असर नहीं हो रहा है। जो 1990-2002 और 2014 में सत्ता के लिये हो चुका है।
