- सरहद पार के दुश्मनों को दे दो यह संदेश…
- बेताब हम निहत्थे ज़माने से लड़ गए…
अलीगढ़। प्रख्यात कवि ज्ञानेंद्र अग्रवाल की चौदहवीं पुण्यतिथि के उपलक्ष्य में शिखर साहित्यिक संस्था द्वारा मुक्ताकाश नुमाइश मंच पर साहित्यकार सम्मेलन का आयोजन किया गया। प्रथम सत्र में मुख्य अतिथि के रूप में गुड़गांव से पधारे चर्चित कलमकार और आरुषि हत्याकांड पर जजमेंट किताब लिखने वाले रचनाकार संजय सिसोदिया ने कहा कि साहित्य समाज और विकास के बीच की खाई को पाटता है। आज ज्ञानेंद्र जी जैसे साहित्यकारों की बेहद आवश्यकता है।
विशिष्ट अतिथि एसपी भंती ने कहा कि ‘श्रेष्ठ साहित्य सामाजिक संस्कृति का संवाहक है।’ डॉ. हरीश बेताब ने ज्ञानेंद्र अग्रवाल की ये पंक्तियां पढ़ते हुए उन्हें याद किया। ‘अपनी-अपनी फिक्र है, गया भाड़ में देश। वोटों के बाज़ार में, पूँजी का विनिवेश।’ ज्ञानेंद्र अग्रवाल की धर्मपत्नी शशिबाला अग्रवाल ने कहा कि श्रेष्ठ साहित्य रचना के लिए श्रेष्ठ साहित्य पढ़ना और सुनना भी आवश्यक है। सुधांशु गोस्वामी ने ज्ञानेंद्र अग्रवाल की स्मृति को प्रणाम करते हुए कहा कि ज्ञानेंद्र जी का साहित्य समाज को अच्छी दिशा व दशा प्रदान करने के लिए आवश्यक है। नवांकुर तभी अच्छा साहित्य रच सकते हैं, जब वह पुराने साहित्यकारों का सानिध्य प्राप्त करें।’
कवि सम्मेलनीय सत्र में बाबर इलियास ने पढ़ा कि ‘बिछड़ कर तुझसे तुझको एक दिन हैरान कर दूंगा। मैं तेरी झील सी आंखों को रेगिस्तान कर दूंगा।’ डॉ. मुजीब शहजर ने ये पंक्तियां पढ़कर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया, ‘सरहद पार के दुश्मनों को दे दो यह संदेश। जान से प्यारे हैं मुझको माटी और यह देश।’ डॉ. हरीश बेताब इन पंक्तियों ने खूब तालियां बटोरी। ‘बेताब हम निहत्थे ज़माने से लड़ गए। क्या था हमारे हाथ में अखबार ही तो था। सुधांशु गोस्वामी ने यह गीत सुनाकर श्रोताओं को आनंदित कर दिया, ‘लिखूं क्या कविता में श्रीमान। समर शंख का नाद लिखूं मैं या वंशी की तान।’