सनातन संस्कृति की ओर दुनिया का बढ़ता रुझान

विचार

लाखों वर्ष पुरानी भारत की सभ्यता और ज्ञान के अकूत भण्डार को हमारे ऋषि-मुनियों ने विभिन्न धार्मिक ग्रन्थों के माध्यम से सहेज कर रखा, फिर चाहे वे वेद, रामायण, महाभारत, पुराण,गीता या उपनिषद ही क्यों न् हों।सभी का सन्देश सकल मानव मात्र का कल्याण, नीति, धर्म और कर्म के अनुरूप आचरण करना ही है।ऋग्वेद,यजुर्वेद, सामवेद,अथर्ववेद चारों वेदों में ब्रह्मा, ब्राह्मण, विज्ञान, प्रकृति, औषधि, भूगोल, संस्कार,भूगोल, रसायन, गणित, रीतिरिवाज आदि सभी महत्वपूर्ण विषयों से सम्बंधित ज्ञान मौजूद है और इन्हीं वेदों का निचोड़ या कहें सार हमारे उपनिषद हैं जो भारतीय आध्यात्मिक चिंतन के मूल आधार या आध्यात्मिक दर्शन के स्रोत हैं जिनमें योग, ध्यान, समाधि, चिंतन, मोक्ष आदि से संबंधित बातें मिलती हैं। भारतीय धार्मिक ग्रन्थों को दो भागों में विभाजित किया गया है श्रुति और स्मृति। श्रुति के अंतर्गत वेद आते हैं जबकि स्मृति में इतिहास और वेदों की व्याख्या की पुस्तकें, पुराण, महाभारत, रामायण, स्मृतियां आदि आते हैं। महाभारत के १८ अध्यायों के ७०० श्लोकों में से एक भीष्म पर्व का हिस्सा है गीता। गीता में कुल १८ अध्याय हैं जिनमें भक्ति, ज्ञान, योग, कर्म की विस्तृत चर्चा की गई है। सही मायने में, श्रीमद्भागवत गीता योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण की वाणी है, जिसके ज्ञान से मनुष्य की अज्ञानता का अंधकार नष्ट हो जीवन की व्यवहारिक व आध्यात्मिक समस्याओं को सुलझाने के लिए अर्जुन के प्रासंगिक प्रश्नों के उत्तर का वर्णन है गीता।
लाखों वर्ष पूर्व हमारे ऋषि मुनियों ने सांसारिक सुख सुविधाओं को त्याग कर अध्यात्म के मार्ग पर चलकर न केवल विराट शक्तियां अर्जित कीं बल्कि उनके द्वारा शत्रुओं पर विजय प्राप्त की। इतिहास गवाह है कि विदेशी आक्रांताओं, मुगलों व अंग्रेजों के द्वारा देश की यह अनमोल विरासत पूरी तरह छिन्न भिन्न कर देने के बावजूद भारत की अध्यात्म की मूल चेतना न् केवल आज भी मौजूद है बल्कि लगातार बढ़ रही है।भारतीय धार्मिक ग्रन्थों में अध्यात्म के साथ भौतिक जीवन को साधते हुए आध्यात्मिक मूल्यों पर चलने का संदेश दिया गया है, क्योंकि भौतिक संपत्ति शरीर के साथ छूट जाती है जबकि इनसे अर्जित आध्यात्मिक संपदा अगले जन्मों में भी हमारे साथ जाती है। ‘जगत्यां यत् किं च जगत् अस्ति इदं सर्वम् ईशा वास्यम्। त्यक्येन भूञ्जीथाः। कस्यस्वित् धनं मा गृधः तेन’।ईश्वर सर्व व्यापक है, भौतिक जगत में रहते हुए भी अध्यात्म के लक्ष्य को न् भूलना और सांसारिक लोभ में न् फंसना अर्थात अपने कर्म को साधन मानते हुए परम् सत्य की ओर बढ़ना है।भारत ने इसी दर्शन पर चलकर भौतिकता की जमीन पर अध्यात्म की विशाल बुनियाद खड़ी की है।
उपनिषद दार्शनिकता एवं आध्यात्मिकता से परिपूर्ण ग्रन्थ हैं ये चिंतनशील ऋषियों द्वारा ब्रह्म के विषय में वर्णित ज्ञान के भंडार तो हैं ही साथ ही भारतीय आध्यात्मिक संस्कृति की मूल धरोहर भी हैं। समस्त भारतीय दार्शनिक चिंतन का मूल उपनिषद ही हैं क्योंकि मानव जीवन के उत्थान के समस्त उपाय उपनिषदों में वर्णित हैं।उपनिषद जीवन मूल्यों अर्थात जो मानव जीवन के लिए कल्याणकारी, शुभ व आदर्श है, की बात करने के अलावा हमें स्वावलंबी बनाने के लिए भी प्रेरित करते हैं। उपनिषदों के चिंतन में धर्म, अर्थ, काम मोक्ष चार पुरुषार्थों में समस्त मानव मूल्य समावेशित हैं पवित्र आचरण, श्रेष्ठ ज्ञान, सत्य,दान,तप,त्याग,लोभ का त्याग,धैर्य,क्षमा आदि उत्तम जीवन मूल्य हैं। स्वावलंबन का आदर्श प्रस्तुत करते हुए ईशोपनिषद में कहा गया है कि “कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेच्छतं समाः” अर्थात जो व्यक्ति निरन्तर जीवन समर में अपने सांसारिक कर्मों का संपादक करता है वही स्वयं तथा राष्ट्र को स्वावलंबन की ओर ले जा सकता है।उपनिषद में कर्मकांड की अपेक्षा ज्ञान को अधिक महत्व दिया गया है।’मातृ देवो भव, पितृ देवो भव, आचार्य देवो भव, अतिथि देवो भव’ वाक्य में माता, पिता, आचार्य और अतिथि को देव तुल्य माना गया है।
उपनिषदों में वर्णित ऐसे कुछ श्लोक हैं जिन्हें भारत सरकार ने अपने विभागों का ध्येय वाक्य बनाया है ताकि संबंधित अधिकारीगण और आमजन पथ भ्रमित हुए बिना निःस्वार्थ भाव से अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते हुए राष्ट्र को परम् वैभव तक पहुंचा सकें।जैसे ‘सत्यमेव जयते’ यह मुण्डकोपनिषद से लिया गया है और भारत सरकार का ध्येय वाक्य है जिसका अर्थ है सत्य की जीत होती है। ‘यतो धर्मोस्ततो जय:’ यह उच्चतम न्यायालय का ध्येय वाक्य है जिसका अर्थ है जहां धर्म है वहां विजय सुनिश्चित है यह श्लोक महाभारत से लिया गया है।’ भय बिनु होय न् प्रीत’ रामायण से लिया गया श्लोक है जो यह स्पष्ट करता है कि भय के बिना प्रीत सम्भव नहीं। ऋग्वेद से लिए गए ‘सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय:’ श्लोक को ऑल इंडिया रेडियो ने अपना ध्येय वाक्य बनाया है जिसका अर्थ है सभी के हित के लिए सभी के सुख के लिए। सीबीएसई का धेयय वाक्य ‘असतो मा सद्गमय’ बृहदारण्यक उपनिषद से लिया गया है, जिसका भाव है हमें अंधकार से प्रकाश यानी असत्य से सत्य की ओर ले चलो।कालिदास महाकाव्य से लिया गया ‘शरीर माघं खुलधर्मसाधनम’ को अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान ने अपना ध्येय वाक्य बनाया, जिसका अर्थ है शरीर सभी कर्तव्यों को पूरा करने का साधन है। रिसर्च एंड एनालिसिस का ध्येय वाक्य ‘धर्मो रक्षति रक्षितः’ अर्थात तुम धर्म की रक्षा करो,धर्म तुम्हारी रक्षा करेगा यह मनुस्मृति से लिया गया श्लोक है।
‘वसुधैव कुटुम्बकम’ अर्थात सम्पूर्ण पृथ्वी एक परिवार है, का उदघोष भारतीय ऋषि मुनियों ने विश्व कल्याण की कामना से किया था जो सनातन संस्कृति की मूल विचारधारा होने के साथ वर्तमान का वैश्विक चिंतन भी था जो सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक दृष्टि से ही नहीं अपितु वैज्ञानिक और आर्थिक दृष्टि से भी समस्त भूमण्ड के लिए कल्याणकारी सिद्ध हो रहा है। कुटुंब अर्थात परिवार सामाजिक संरचना की सबसे छोटी इकाई होने के साथ सामाजिक जीवन में निरंतरता बनाये रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। परिवार उस पुष्ट तने और गहरी नींव वाले वृक्ष की बलिष्ठ शाखाओं के समान होता है जो चारों तरफ फैलकर स्वयं और समाज को आत्मीयता और मनोबल प्रदान कर उन्नति का मार्ग प्रशस्त करता है।भारतीय संसद के प्रवेश द्वार पर अंकित ये ध्येय वाक्य एक दार्शनिक अवधारणा है जो सार्वभौमिक भाईचारे एवं मनुष्यों में परस्पर आपसी सम्बन्धों को पोषित करती है। भारत वसुधैव कुटुम्बकम की इसी अवधारणा को आत्मसात करते हुए न् केवल कोरोना काल में अन्य देशों की सहायता को आगे आया बल्कि तुर्किया और सीरिया में आये विनाशकारी भूकंप के बाद ‘ऑपरेशन दोस्त’ के द्वारा पर्याप्त सहायता सामग्री पहुंचाई।रूस और यूक्रेन से भारतीय नागरिकों को सकुशल निकालने के लिए ‘ऑपरेशन गंगा’ चलाया।कोरोना महामारी के समय विदेशों में फंसे भारतीयों को भारत लाने के लिए ‘वंदे भारत मिशन’ व ‘ऑपरेशन समुद्र सेतु’ चलाया साथ ही 2015 में नेपाल में आये भूकंप में सहायता सामग्री उपलब्ध कराने हेतु ‘ऑपरेशन मैत्री’ को अंजाम दिया गया इसके अतिरिक्त सूडान में हिंसा के बीच भारतीयों को सुरक्षित निकालने के लिए ‘ऑपरेशन कावेरी’ चलाया गया।इन सभी ऑपरेशन को अंजाम देने के पीछे भारत की सोच वसुधैव कुटुम्बकम की ही रही।
ध्येय वाक्यों के रूप में उपनिषदों से लिये गए श्लोक वर्तमान परिप्रेक्ष्य में प्रासंगिक होने के साथ हिंदू राष्ट्र भारत को विश्व गुरु बनाने की राह में सार्थक सिद्ध हो रहे हैं, यही कारण है कि आज दुनिया के ज्यादातर देश न् केवल भारतीय धार्मिक ग्रंथों पर गहन अनुसंधान कर रहे हैं बल्कि कुछ एक मैनेजमेंट कॉलेज में उदाहरण के तौर इन ग्रन्थों को प्रस्तुत किया जा रहा है। इसके अलावा दान,दया,क्षमा,सेवा, समर्पण, संस्कार,शांति जैसे भावों को प्रमुखता देने वाली भारतीय सनातन संस्कृति की महत्वपूर्ण देन योग,प्राणायाम, आयुर्वेद के प्रभावशाली परिणामों से प्रभावित हो कई राष्ट्र उसे अपनी दिनचर्या में शामिल करने के साथ विश्व के ज्यादातर देश भारतीय आध्यात्मिक ज्ञान व दर्शन का अनुसरण कर रहे हैं और तो और कई देशों में तो कोरोना महामारी के बाद से मांसाहारी भोजन के प्रति लोगों के रुझान में भारी कमी देखी जा रही है।
वैश्विक आपदा के बाद भारत में तो आध्यात्मिक परिवर्तन देखने को मिले ही साथ ही वैश्विक स्तर पर भी इसका प्रभाव दिखाई दिया। विकसित और विकासशील देशों की यातायात व्यवस्थाएं ठप्प होने से जब अंतराष्ट्रीय व्यापार थम गया उससे कुछ देशों की अर्थव्यवस्था बुरी तरह प्रभावित हुई जबकि भारत अपने अध्यात्म और ज्ञान के बलबूते कम समय में सीमित जनहानि झेलकर कोरोना को मात देकर और अधिक मजबूत अर्थव्यवस्था के साथ शीघ्र ही उठ खड़ा हुआ यहां तक कि भारत ने महाशक्ति की दौड़ में खड़े देशों का कोरोना को मात देने में मार्गदर्शन कर मनोबल बढ़ाये रखने का काम किया।अवसर का लाभ उठा, जिस वक्त अन्य देश महंगे दामों पर चिकित्सा उपकरण बेच रहे थे उस वक्त भारत ने अन्य देशों की सहायतार्थ अपने यहां निर्मित वैक्सीन हर नागरिक को निशुल्क उपलब्ध कराई साथ ही 21 जून विश्व ‘योग दिवस’ और आयुर्वेद जो प्राचीन भारतीय चिकित्सा की महत्वपूर्ण विधाए हैं,ने कोरोना को मात देने में जो अहम भूमिका निभाई भारत ने उससे दुनिया को अवगत कराया।
भारत ने अपने ज्ञान और अध्यात्म से आपदा को अवसर में बदलते हुए न् केवल दूसरे देशों पर अपनी निर्भरता कम की बल्कि ‘वोकल फ़ॉर लोकल’ के आह्वान ने स्वदेशी लघु और कुटीर उद्योगों को पुनः जीवित कर दिया।जिन रक्षा सामग्री, इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, कम्प्यूटर पार्ट्स आदि के लिए कल तक भारत दूसरे देशों पर निर्भर था आज स्वयं अपने यहां उनका निर्माण कर रहा है।चन्द्रयान-3 का सफल प्रक्षेपण करके भारत ने ये सिद्ध कर दिया कि अंतरिक्ष के क्षेत्र में उसका कोई सानी नहीं है कहने का तात्पर्य है कि वर्तमान में,भारत जहां खड़ा है यह उसके आध्यात्मिक ज्ञान की परिणिति है।साथ ही आर्थिक रूप से सम्पन्न विश्व के 20 देशों के समूह जी 20 देशों का सफल नेतृत्व करके भारत ने ये सिद्ध कर दिया कि दिन भी दूर नहीं जब भारत न् केवल विकसित राष्ट्रों की सूची में शामिल होगा बल्कि अपने परम वैभव को प्राप्त करने में सफल होगा।
– अनुपमा अग्रवाल (स्तम्भकार), अलीगढ़

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