अलीगढ़। गणेश चतुर्थी 19 सितंबर को और अगले दिन 20 सितंबर को पंचमी के दिन ऋषि पंचमी मनाई जाएगी। भाद्रपद शुक्ल पक्ष चतुर्थी स्वाति नक्षत्र वैधृति योग विष्टि करण के शुभ संयोग में श्रीगणेश चतुर्थी 19 सितंबर को मान्य होगी। यह कहना है याज्ञवलक्स सेवा संस्थान के ज्योतिषाचार्य प्रकाश शास्त्री का।
ज्योतिषाचार्य प्रकाश शास्त्री ने बताया कि भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी तिथि का आरंभ 18 सितंबर की दोपहर 12ः39 बजे से शुरू होकर अगले दिन 19 सितंबर को दोपहर 1ः43 बजे समाप्त हो जाएगी। मान्यता है कि भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से अनंत चतुदर्शी तक यानी कि 10 दिनों तक भगवान गणपति पृथ्वी पर वास करते हैं। अनंत चतुर्दशी को विसर्जन किया जाता है। गणेश पूजन का श्रेष्ठ समय वृश्चिक लग्न सहित मध्याह्न काल में अतिशुभ माना गया है।
ज्योतिषाचार्य ने स्वदेश संवाददाता देवेंद्र पाल सिंह जानकारी देते हुए बताया कि सुबह 10ः54 बजे से दोपहर 1ः10 बजे तक पूजन का समय रहेगा, जिसमें श्रीगणेशजी की स्थापना अत्यंत शुभ रहेगी। भगवान गणेश की पूजा करने के लिए स्नान करके लाल रंग के कपड़े पहनें क्योंकि, गणेशजी को लाल रंग प्रिय है। पूजा करते समय आपका मुंह पूर्व दिशा में या उत्तर दिशा में होना चाहिए। सबसे पहले गणेशजी को पंचामृत से स्नान कराएं, उसके बाद गंगा जल से स्नान कराएं। गणेशजी को चौकी पर लाल कपड़े पर बिठाएं। ऋद्धि-सिद्धि के रूप में दो सुपारी रखें। गणेशजी को सिंदूर लगाकर चांदी का वर्क लगाएं या कपड़े भी पहना सकते हैं। लाल चंदन का टीका और अक्षत (चावल) लगाएं। मौली और जनेऊ अर्पित करें। लाल रंग के पुष्प या माला, इत्र अर्पित, दूर्वा (धास) आदि अर्पित करें। नारियल, पंचमेवा चढ़ाएं, पांच प्रकार के फल अर्पित करें मोदक और लड्डू आदि का भोग लगाएं। लौंग व इलायची अर्पित करें और दीपक व धूप आदि जलाएं।
ज्योतिषाचार्य न बताया कि हिंदू पंचांग के भाद्रपद महीने में शुक्ल पक्ष पंचमी को मनाया जाता है। यह त्योहार गणेश चतुर्थी के अगले दिन होता है। भादों शुक्ल पंचमी के व्रत को ऋषि पंचमी व्रत कहते हैं। इसको स्त्री-पुरुष सभी पापों की निवृत्ति के लिए करते हैं। व्रत वाले दिन ब्रह्ममुहूर्त में उठकर किसी नदी या जलाशय में स्नान करके रेशमी वस्त्र धारण करें। मन में व्रत का निश्चय करके आंगन में बेदी बनाकर शुद्ध मन से पंचामृत तैयार करें। तब अरुंधती सहित सप्त ऋषियों को उस पंचामृत में स्नान कराएं। फिर शुद्ध वस्त्र से उनको सुखाकर उनकों आसन पर विराजमान करें, तब सप्तऋषियों के निमित्त चंदन, अगर, कपूर आदि गंध दें।
